Sunday, August 30, 2015

ganga ka dharti par aana

गंगा का धरती पर आगमन |

Hindu Mythological  Story



सूर्यवंशी राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ हिमालय पर तपस्या कर रहे थे । वे गंगा को धरती पर लाना चाहते थे । उनके पूर्वज कपिल मुनि के शाप से भस्म हो गये । गंगा ही उनका उद्वार कर सकती थी । भागीरथ अन्न जल छोड़कर तपस्या कर रहे थे ।

गंगा उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न हो गई । भागीरथ ने धीरे स्वर में गंगा की आवाज सुनी । महाराज मैं आपकी इच्छानुसार धरती पर आने के लिये तैयार हूँ, लेकिन मेरी तेज धारा को धरती पर रोकेगा कौन । अगर वह रोकी न गई तो धरती के स्तरों को तोड़ती हुई पाताल लोक में चली जायेगी ।

भागीरथ ने उपाय पूछा तो गंगा ने कहा, महाराज भागीरथ, मेरी प्रचन्ड धारा को सिर्फ शिव रोक सकते है । यदि वे अपने सिर पर मेरी धारा को रोकने के लिये मान जाये तो मैं पृथ्वी पर आ सकती हूँ ।

भागीरथ शिव की अराधना में लग गये । तपस्या से प्रसन्न हुए शिव गंगा की धारा को सिर पर रोकने के लिये तैयार हो गये ।

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के दशहरे के दिन जटा खोलकर, कमर पर हाथ रख कर खड़े हुए शिव अपलक नेत्रों से ऊपर आकाश की ओर देखने लगे । गंगा की धार हर हर करती हुई स्वर्ग से शिव के मस्तक पर गिरने लगी । जल की एक भी बूँद पृथ्वी पर नहीं गिर रही थी । सारा पानी जटाओं में समा रहा था ।

भागीरथ के प्रार्थना करने पर शिव ने एक जटा निचोड़ कर गंगा के जल को धरती पर गिराया । शिव की जटाओं से निकलने के कारण गंगा का नाम जटाशंकरी पड़ गया ।

गंगा के मार्ग में जहृु ऋषि की कुटिया आयी तो धारा ने उसे बहा दिया । क्रोधित हुए मुनि ने योग शक्ति से धारा को रोक दिया । भागीरथ ने प्रार्थना की तो ऋषि ने गंगा को मुक्त कर दिया । अब गंगा का नाम जाहृनवी हो गया ।

कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचकर गंगा ने भागीरथ के महाराज सगर आदि पूर्वजों का उद्वार किया । वहाँ से गंगा बंगाल की खाड़ी में समाविष्ट हुई, उसे आज गंगासागर कहते है ।

अतः ये कहानी हमें ये सीखाती है की सच्चे मन, लगन और एक लक्ष्य के साथ किया गया कार्य हर बाधाओं को तोड़कर सफल होता है एवं हमें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है ।